Tuesday 27 November 2012

अमर उजाला से एक कविता


2 comments:

  1. इतिहास और भविष्य के इस पुल पर खड़ा नहीं गुजार सकता अपनी उम्र ......शानदार कविता ,प्रेरणाप्रद ।

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  2. भविष्य की ओर आँख की हुई आपकी इस कविता को पढ़ना सुखद है; और दिलचस्प भी। यह कविता मन में आशा का संचार करती हैं। हर एक को जीवन की धूपछाहीं से गुजरते हुए निरन्तर गतिमान रहने की प्रेरणा देती हैं। यह इशारा करती हैं कि स्वभाव में स्थिरता(निष्पक्षता/तटस्थतता) बरतती पिण्डें अंततः नष्ट हो जाती है, इतिहास के कब्र में वे मम्मी बन दबी रह जाती हैं; जबकि विवेक-विक्षोभ से पगी/भींगी संवेदनाएँ समय के समानान्तर चलती(तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद) हुई भविष्य से निकाह कर लेती हैं।

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